Sunday, October 04, 2009

मेरी इच्छाएं


मेरे मन में आती है
इच्छाएँ बार-बार,
इच्छाओं का क्या करें
इन्हें खत्म कैसे करें ।
सोचता रहा मैं
रात भर जागकर
मगर कुछ मिला नहीं
इसके जवाब में,
जो मुझे शांत करता
और मेरे मन को भी
जिसमें आती-जाती है
इच्छाएँ बार-बार;
मानो पूनम की रात है
और मन समुद्र बनकर
ज्वार-भाटा खेल रहा है ;
और इच्छा लहरें बनकर
उठती और गिरती है;


यहीं कहीं लहरों में
फंसा हुआ एक आदमी
अनियंत्रित है,
बेजान है, बेचारा है;
किसी पुतले की तरह
जिसे इच्छा की लहरें
कभी खींचती है तो
कभी धक्के मारती है;

इन्हीं धक्कों को
सहता हुआ वह आदमी
इन लहरों के वश में है;
इनसे बचने के लिए
वह कर रहा इंतजार
किसी दूसरी लहर का;
कौन सी लहर
किनारा पहुंचायेगा
उसे नहीं पता है;
इसीलिए वह बेचारा
लहरों से धक्के खाता है,
और ये बतलाता है;
इच्छा को खत्म करने की
इच्छा भी एक इच्छा है ।।

1 comment:

kundan said...

bahut achi lekhan hai,,,,,
keep it up